प्रदेश में दलबदल की अटकलों के बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की देहरादून में एंट्री और तेज गति विधि ने प्रदेश की सियासत गरमा दिया है। वहीं अचानक एंट्री तेज गति विधि करने के बाद विजय बहुगुणा की बागियों और सीएम से हुई मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। क्योंकि उन्हें खुद भाजपा पिछले 5 साल से खाली बैठाए हुए हैं। बावजूद इसके विजय बहुगुणा ने कभी भाजपा के नेताओं या सरकार के खिलाफ मुंह नहीं खोला। उल्टा वह अब नाराज बागियों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं।
उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को साल 2012 में कांग्रेस ने सिर आंखों पर बिठाया और प्रदेश का मुख्यमंत्री पद दे दिया। इससे पहले विजय बहुगुणा को टिहरी लोकसभा सीट का टिकट देकर संसद तक का सफर भी कांग्रेस नहीं करवाया। लेकिन जब परिस्थितियां बदली तो विजय बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और वह 2016 में हरक सिंह समेत कई नेताओं के साथ कांग्रेस की सरकार गिराने के इरादे के साथ भाजपा में शामिल हो गए। अतीत की बातों को याद करना इसलिए जरूरी है क्योंकि आज वही विजय बहुगुणा भारतीय जनता पार्टी में रुसवाई मिलने पर भी खामोशी के साथ लम्बे समय से बिना कुछ कहे सब कुछ झेल रहे है । लिहाजा सवाल उठ रहा है कि विजय बहुगुणा को भाजपा में आकर जब कुछ भी नहीं मिला तो वह इतने शांत क्यों हैं ? और उन्होंने अपने राजनीतिक सफर को खत्म करने का रिस्क कैसे ले लिया। इसके कई राजनीतिक जवाब भी हैं और मायने भी।
राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दांव पर लगाया अपना राजनीतिक सफर माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा का भाजपा को लेकर नर्म रुख अपने बेटों को लेकर है कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद वह पहले ही अपने छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से भारतीय जनता पार्टी का टिकट दिलवाने में कामयाब रहे और इसी टिकट पर उनका बेटा अब पहली बार विधायक भी बन है। उम्मीद है कि अब वह अपने बड़े बेटे साकेत बहुगुणा को भी भाजपा की ही सीढ़ी पर चढ़ा कर राजनीति में पहला ब्रेक थ्रू दिलाना चाहते हैंं और इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीति को पीछे छोड़ दिया।
सब्र का फल मीठा होता है इस फार्मूले पर चल रहे विजय बहुगुणा को बेटों की राजनीति को आगे बढ़ाने की तो तमन्ना होगी ही, साथ ही उनके भाजपा में देरी से ही सही लेकिन किसी बड़ी जिम्मेदारी के मिलने का इंतजार भी होगा। माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा को अब भी उम्मीद है कि उन्हें लोकसभा से टिहरी सीट पर टिकट दिया जा सकता है या राज्यसभा से लेकर राज्यपाल तक की कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है इसी उम्मीद के साथ उन्होंने धैर्य रखते हुए मीठे फल की उम्मीद भी की होगी।
विजय बहुगुणा की पिछले 5 सालों से चुप्पी की एक बड़ी वजह भाजपा के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होना भी है एक तरफ विजय बहुगुणा को मोदी लहर पर इतना विश्वास है कि उन्हें फिलहाल भाजपा का ही साथ सही लग रहा है। दूसरी तरफ विजय बहुगुणा का कांग्रेस में पहले जैसे ही हालात होने की बात कहना यह भी जाहिर करते हैं कि उन्हें भी फिलहाल भाजपा के अलावा राजनीति करने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा है। उधर भाजपा ने भले ही उन्हें जिम्मेदारियों से दूर रखा हो लेकिन उनके बेटे को विधायक और उनके करीबी सुबोध उनियाल को मंत्री के रूप में स्थापित कर दिया है।
भले ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपनों के लिए अपना राजनीतिक करियर को दाव पर लगा दिया हो लेकिन वर्तमान में उनके प्रदेश के मुख्यालय पर एंट्री और तीज गतिविधि ने एक बार फिर बहुगुणा के भीतर पल रही राजनीतिक आकांक्षाओं को जिंदा कर दिया है। और यह जाहिर हो गया है कि इस बार प्रदेश में 2022 विधानसभा का चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस बार प्रदेश में विधानसभा चुनाव किस तरीके का इतिहास कायम करता है लेकिन राजनीतिक गलियारों में विजय बहुगुणा को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का दौर जोरो शोरो के साथ राजनीतिक हलचले तेज कर रहा हैं ।