प्रदेश उत्तराखंड में 70 विधानसभाओ में होने वाले विधानसभा चुनाव हमेशा ही बेहद दिलचस्प रहते हैं। साल 2017 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस काफी करीबी मुकाबले में दिखाई दिए थे। हालांकि 2017 में प्रचंड बहुमत के दौरान भाजपाई उम्मीदवारों ने काफी आसान और बड़ी जीत प्रदेश में हासिल की लेकिन आने वाले चुनाव भाजपाइयों के लिए इतने आसान नहीं होने वाले हैं। राज्य में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी बेहद ज्यादा है। ऐसे कई मुद्दे हैं जिस पर चुनाव के दौरान भाजपा के उम्मीदवारों को जनता के सामने जवाब देना काफी मुश्किल होगा। महंगाई, रोजगार और किसानों की नाराजगी से लेकर पिछले 5 सालों में 3 मुख्यमंत्री बदलने से भी भाजपा के खिलाफ जनता का आक्रोश काफी ज्यादा है। राज्य में मौजूदा कैबिनेट के सदस्यों की सीटों का ही आकलन करें तो कई दिग्गजों को चुनाव जीतने के लिए भारी पसीना बहाना पड़ेगा।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के अब कुछ ही समय बचा है। ऐसे में सत्ता पर काबिज भाजपा के साथ सभी राजनीकित दलों ने जीत के लिए अपने-अपने समीकरणों पर काम शुरू कर दिया है। मौजूदा वक्त में सताधारियो पार्टी के नए और पुराने नेताओं के साथ विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों ने पूरी तरह से कमर कस ली है। बावजूद इसके इस बार मौजूदा वक्त में भाजपा के कई नेताओं को अपनी सीट बचाने और दोबारा सत्ता पर काबिज होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड सकती है हालात तो यह भी बताते हैं कि भाजपा के कुछ नेता अपनी मौजूदा सीट को गवा भी सकते हैं यही कारण साल 2017 के मुकाबले इस बार का विधानसभा चुनाव ज्यादा दिलचस्प नजर आ रहा है।
वर्तमान समय के साथ राजनीतिक समीकरणों के अनुसार सत्ता पर काबिज भाजपा और भाजपा के मंत्रियों, विधायकों को अपनी कुछ विधानसभाओं में कड़ी मेहनत के साथ बड़े संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। राजनीतिक आंकलनों के अनुसार खटीमा,नरेंद्र नगर, मसूर, हरिद्वार, श्रीनगर, चौबट्टाखाल, कोटद्वार, डीडीहाट, सोमेश्वर, कालाढूंगी,बाजपुर, गदपुर, सिरातगंज,रुद्रपुर,किच्छा साथ कुछ और विधानसभा में भाजपा के मंत्रीओ और विधायकों के चुनाव में जीत का सपना अंधकार में नजर आ रहा है। आज के इस चर्चा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा के साथ उनके गृह जनपद के विधानसभा सीटों पर नजर डाले तो…………………
सबसे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से शुरुआत करें तो खटीमा से जीत कर आने वाले इस युवा विधायक को साल 2017 में 29,383 वोट मिले थे वही जबकि इनके प्रतिद्वंदी जिन्हें हाल ही में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है भुवन कापड़ी 26,734 वोट पाने में कामयाब रहे वही इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के रमेश राणा ने 17,770 वोट मिले थे। जाहिर है इस सीट पर पुष्कर धामी की जीत को आसान करने में बीएसपी ने अहम रोल निभाया और मोदी की प्रचंड लहर में भी मात्र 2600 वोटों से ही मुख्यमंत्री धामी जीत सके। लेकिन इस बार 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा।
सूबे के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी के बाद प्रदेश के शिक्षा एवं खेल मंत्री अरविंद पांडे की विधानसभा गदरपुर सीट की बात की जाए तो 2017 में गदरपुर सीट से अरविंद पांडे ने मोदी लहर में 41,530 वोट पाए थे और कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र पाल ने 27,424 वोट मिले थे इस सीट पर अरविंद पांडे बेहद मजबूत उम्मीदवार हैं। बीएसपी समेत मुस्लिम प्रत्याशी उनकी जीत को आसान करते हैं। लेकिन इस बार किसानों की कड़ी नाराजगी के साथ आप पार्टी और कांग्रेस
भाजपा के लिए कुछ मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश के मंत्री अरविंद पांडे के बाद ऊधम सिंह नगर जनपद के किच्छा विधानसभा सीट पर भाजपा को खड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है हालांकि 2017 विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायक राजेश शुक्ला ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को इस सीट पर मात देकर किच्छा विधानसभा को पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनाया था। इतना ही नहीं इस सीट पर विधायक राजेश शुक्ला का विधायकी प्रदर्शन काफी उत्कृष्ट है लेकिन मुस्लिम वोटरों के साथ नाराज किसान पंजाबी समाज के वोटरों का झुकाव भी कांग्रेस के तिलक राज बेहड की ओर नजर आ रहा है इतना ही नहीं भाजपा से ताल्लुक रखने वाले एक नेता का पूरी तरीके से चुनाव लड़ने का मन बना भी किच्छा विधानसभा में भाजपा और राजेश शुक्ला के लिए मुश्किले पैदा कर सकते हैं सूत्रों से मिली भीतरी जानकारी के अनुसार विधायक शुक्ला के जातिगत वोट भी उनसे नाराज नजर आ रहे हैं। ये ही कारण की इस बार किच्छा विधानसभा में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अरे अरे जरा रुकिए…… मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा बाद उनके विधानसभा से सटे सितारगंज विधानसभा को तो हम भूल ही गए यहां भी मौजूदा वक्त में भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर नजर नहीं आ रही है हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में वर्तमान मौजूदा विधायक को अपार जनमत मिला था लेकिन यहां भी किसानों की नाराजगी और विकास क धीमी रफ्तार से नाराज वोटरों का झुकाव भी अन्य पार्टी की ओर नजर आ रहा है।
अंत में ऊधम सिंह नगर जनपद के जिला मुख्यालय रुद्रपुर विधानसभा में चुनाव सर्वे और आकलन की माने तो भाजपा के गढ़ होने के और मौजूदा विधायक के दो बार बड़े मार्जन से चुनाव जीतने के बावजूद भी रुद्रपुर विधानसभा में भाजपा को कड़ी परिश्रम के साथ हार का भी मुंह देखना पड़ सकता है विश्वसनीय सूत्रों और राजनैतिक आकंलनो की माने तो मौजूदा विधायक के परफॉर्मेंस में विकास कार्य की धीमी रफ्तार के कारण वोटरों की नाराजगी, कई मुद्दों पर भाजपा और मौजूदा विधायक से वोटरों का विश्वास कम होना, ग्रामीण क्षेत्रों के वोटरों में भाजपा के लिए नाराजगी, भाजपा के अंदरूनी कलह , मौजूदा विधायक बड़बोलापन ऐसे कुछ मुद्दे हैं जो इस बार लोगों की नाराजगी का विषय बन सकती है।
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री समेत कई और कैबिने सदस्य, करीब 4 से 5 ऐसे मंत्री हैं, जो बड़ा चेहरा होने के बावजूद 2022 में चुनाव जीतने को लेकर थोड़ा कमजोर दिखाई दे रहे हैं। हालांकि भाजपा संगठन यह मानता है कि विधायकों को जिताने के लिए संगठन अपने स्तर से बूथ लेवल पर काम कर रहा है और हर हाल में 60 सीटें जीतने के लिए होमवर्क किया जा रहा है। इस मामले में कांग्रेस का भी अपना तर्क है कांग्रेस मानती है कि इस बार भाजपा सरकार ने जिस तरह से काम किया और भ्रष्टाचार समेत बेरोजगारी और महंगाई पर जनता के सामने सरकार बेनकाब हुई उससे भाजपा के लिए मुश्किलें बेहद ज्यादा होंगी। इन्हीं मुद्दों के सहारे कांग्रेस सत्ता की सीढ़ी चलेगी जबकि भाजपा के विधायकों के लिए इस बार यह मुद्दा हार का कारण बन जाएंगे। तो वही इस बार आप पार्टी भी चुनावी अखाड़े कूद रही है। ऐसे में आप के प्रत्याशी भी कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने प्रदेश की जनता से जो वादे किये हैं उन वादों के जरिए आम आदमी पार्टी भी अपना दबदबा बना सकती है।